शीतल सुबह की हल्की धूप खिड़की के पर्दों से छनकर अंदर आ रही थी। निहारिका अपनी किताबों में खोई हुई थी, जब उसकी नज़र अचानक खिड़की के बाहर खड़े एक अजनबी पर पड़ी। उसने हल्के से पर्दा हटाया और देखा कि वह लड़का उसे ही देख रहा था। उसकी आँखों में एक अजीब सी कशिश थी, जो निहारिका के दिल में हलचल मचा गई।
वह लड़का रोज़ सुबह उसी समय, उसी जगह खड़ा दिखाई देता। निहारिका का ध्यान अब किताबों से हटकर उस लड़के पर ज्यादा जाने लगा था। कुछ दिनों तक ये सिलसिला ऐसे ही चलता रहा, और निहारिका के दिल में एक नयी कहानी जन्म लेने लगी।
एक दिन, निहारिका ने हिम्मत करके खिड़की से बाहर झाँककर लड़के से बात करने की ठानी। लेकिन जैसे ही वह खिड़की तक पहुंची, लड़का वहां से जा चुका था। निहारिका का दिल टूट सा गया। उसने खुद को समझाया कि ये महज एक इत्तेफाक था, लेकिन उसका दिल मानने को तैयार नहीं था।
कुछ दिन बीत गए, लेकिन वह लड़का फिर नहीं आया। निहारिका के मन में उदासी छा गई। वह लड़के को न देखकर परेशान रहने लगी। एक दिन, जब वह कॉलेज से लौट रही थी, तभी वही लड़का उसके सामने आ गया। निहारिका का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा।
लड़के ने मुस्कुराते हुए कहा, “तुम्हारी खिड़की के बाहर खड़ा रहना अब बेमानी सा लगने लगा था, इसलिए आज सामने आ गया। मैं अर्जुन हूँ, और तुमसे दोस्ती करना चाहता हूँ।”
निहारिका की आँखों में खुशी के आँसू आ गए। उसने मुस्कुराते हुए अपना हाथ आगे बढ़ाया और कहा, “मैं निहारिका हूँ, और मुझे तुम्हारा इंतज़ार था।”
उस दिन के बाद से अर्जुन और निहारिका की दोस्ती धीरे-धीरे प्यार में बदल गई। वो दोनों साथ में वक़्त बिताने लगे, हँसते-खेलते और एक-दूसरे के बिना जीने की कल्पना भी नहीं कर पाते थे।
यह कहानी उन दोनों की थी, जिन्होंने पहली नज़र में ही एक-दूसरे को चाह लिया था। और उनका प्यार दिन-ब-दिन गहराता चला गया।